जयपुर,। राजस्थान हाइकोर्ट ने 15 साल पहले आरपीएमटी-2009 के जरिए एमबीबीएस में फर्जी तरीके से प्रवेश लेने के मामले में 9 अभ्यर्थियों को राहत देने से इनकार करते हुए उनकी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। जस्टिस समीर जैन की एकलपीठ ने यह आदेश रविकांत निर्वाण व अन्य की याचिकाओं पर दिए।

अदालत ने माना की मामले में की गई सीबीआई जांच और एफएसएल में सामने आया है कि याचिकाकर्ताओं ने फर्जीवाडा किया है। वहीं आयूएचएस ने नियमों का पालन करने हुए ही उनका प्रवेश रद्द किया था।

याचिकाओं में कहा गया था कि उन्हें सुनवाई का मौका दिए बिना ही उनका प्रवेश निरस्त किया गया। जिसके जवाब में आरयूएचएस की ओर से कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने निधि कायल के मामले में दिए गए निर्णय के अनुसार परीक्षाओं में सामूहिक नकल के मामलों में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की पालना किया जाना जरूरी नहीं है। इसके अलावा याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का पूरा मौका मिला था। गौरतलब है कि साल 2009 में आरपीएमटी में याचिकाकर्ताओं सहित 16 अभ्यर्थियों ने भाग लिया था। उसमें चयन के बाद उन्हें एमबीबीएस में प्रवेश मिल गया। इसके बाद हस्ताक्षर आदि के मिलान नहीं होने पर उनके प्रवेश को गलत माना गया। इस मामले में हाईकोर्ट ने आईपीएस पीके सिंह की कमेटी से जांच कराई और बाद में केन्द्रीय जांच एजेंसी से भी जांच के आदेश दिए गए। एजेंसी ने परीक्षण के बाद इन अभ्यर्थियों के हस्ताक्षर आदि पर सवाल उठाया था।

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