मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने किया जनसंघ के संस्थापक डॉ. मुखर्जी को याद, दी श्रद्धांजलि
भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का आज बलिदान दिवस है। डॉ. मुखर्जी भारत की अखंडता और कश्मीर के विलय के दृढ़ समर्थक थे। उन्होंने अनुच्छेद 370 के राष्ट्रघातक प्रावधानों को हटाने के लिए भारतीय जनसंघ के माध्यम से हिन्दू महासभा और रामराज्य परिषद के साथ मिलकर सत्याग्रह आरंभ किया था।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, “भारतीय जनसंघ के संस्थापक, परम श्रद्धेय डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के बलिदान दिवस पर उनके चरणों में सादर श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।आपने अखंड भारत के जिस संकल्प के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया, वह आज राष्ट्र के नवनिर्माण के साथ साकार हो रहा है। मां भारती की सेवा, लोककल्याण और कमजोर वर्ग के उत्थान की दिशा दिखाते आपके प्रखर विचार, चिंतन, सर्वांगीण विकास हेतु मार्गदर्शन गौरवशाली भारत के निर्माण के आधार हैं।”
उल्लेखनीय है कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। संसद में अपने भाषण में उन्होंनें धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की। अगस्त 1952 में जम्मू कश्मीर की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था
भारत माता के इस वीर पुत्र का जन्म 6 जुलाई 1901 को एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। इनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बंगाल में एक शिक्षाविद् और बुद्धिजीवी के रूप में प्रसिद्ध थे। कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक होने के पश्चात श्री मुखर्जी 1923 में सेनेट के सदस्य बने। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात, 1924 में उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में नामांकन कराया।
कांग्रेस प्रत्याशी और कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि के रूप में उन्हें बंगाल विधान परिषद का सदस्य चुना गया किन्तु कांग्रेस द्वारा विधायिका के बहिष्कार का निर्णय लेने के पश्चात उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। बाद में डॉ. मुखर्जी स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े और निर्वाचित हुए।
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अंतरिम सरकार में उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री के रूप में शामिल किया। नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के बीच हुए समझौते के पश्चात 6 अप्रैल 1950 को उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर-संघचालक गुरु गोलवलकर से परामर्श लेकर श्री मुखर्जी ने 21 अक्टूबर 1951 को राष्ट्रीय जनसंघ की स्थापना की।
1951-52 के आम चुनावों में राष्ट्रीय जनसंघ के तीन सांसद चुने गए जिनमें एक डॉ. मुखर्जी भी थे। तत्पश्चात उन्होंने संसद के अन्दर 32 लोकसभा और 10 राज्यसभा सांसदों के सहयोग से नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी का गठन किया। एक दक्ष राजनीतिज्ञ, विद्वान और स्पष्टवादी के रूप में वे अपने मित्रों और शत्रुओं द्वारा सामान रूप से सम्मानित थे। एक महान देशभक्त और संसद शिष्ट के रूप में भारत उन्हें सम्मान के साथ याद करता है।