हरिद्वार। भारतीय भाषा उत्सव के अवसर पर गुरुकुल कांगड़ी सम विश्वविद्यालय के अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संकाय में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें भाषाई विविधता और राष्ट्रीय एकता पर जोर दिया गया। कार्यक्रम का मुख्य विषय अनेकता में एकता था।

कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि डीन प्रो. विपुल शर्मा ने किया। उन्होंने भारतीय भाषाओं की विविधता पर प्रकाश डाला और इसे राष्ट्रीय एकता का आधार बताया। उन्होंने कहाकि कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी, भारत की भाषाई समृद्धि को दर्शाता है। प्रो. विपुल शर्मा ने बताया कि गीता जयंती भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश की स्मृति में मनाई जाती है और गीता जीवन का मार्गदर्शन करती है तथा धर्म, कर्म और ज्ञान का संदेश देती है।

इस अवसर पर डॉ. सुनील पंवार ने महाकवि भारती की कविताओं पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि महाकवि भारती ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में समानता और स्वतंत्रता का संदेश दिया। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं। प्रशांत कौशिक ने भाषाई विविधता को सांस्कृतिक धरोहर बताते हुए कहा कि क्षेत्रीय भाषाएं हमारी पहचान को सुदृढ़ करती हैं। इस अवसर पर उन्होंने तुम चाहती हो शीर्षक पर अपनी स्वरचित कविता का भी पाठ किया और कहा कि भाषा ही विचार है। हर भाषा की अपनी-अपनी सुंदरता है। गजेंद्र सिंह ने भारतीय भाषाओं को संरक्षित करने की आवश्यकता पर बल दिया।

ऋषि प्रजापति ने छात्रों को प्रेरित करते हुए कहा कि भाषा केवल संचार का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कृति का वाहक भी है। डॉ. सुयश भारद्वाज ने अनेकता में एकता पर अपने विचार रखे और इसे भारत की सबसे बड़ी शक्ति बताया।

कार्यक्रम में छात्रों के द्वारा कविता पाठ कर भारतीय भाषाओं की विविधता और महत्व का परिचय दिया गया। शिवा कृष्णा, तृतीय वर्ष के छात्र, ने तेलुगु में राजनीतिक आंदोलन से संबंधित एक सुंदर कविता का पाठ किया। बताया कि साहित्य किस प्रकार क्षेत्रीय आंदोलनों का प्रतिबिंब होता है। कृष्णा चैतन्य, तृतीय वर्ष के छात्र ने प्रसिद्ध तेलुगु लोरी चंदा मामा रावे जबिल्ली रावेष् की सुंदरता को समझाया। उन्होंने आंध्र-तेलंगाना क्षेत्र की बोलियों की विविधता को भी उजागर किया।

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