नई दिल्ली। कारगिल में पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ करने के बारे में पहली सूचना देने वाले चरवाहा ताशी नामग्याल का निधन हो गया। उन्हीं की सूचना के बाद भारतीय सेना सतर्क हुई और करीब दो महीने तक चले युद्ध के बाद कारगिल की पहाड़ियों को घुसपैठियों से खाली कराया गया। उनका अंतिम संस्कार रविवार को लद्दाख में सेना की मौजूदगी में पूरे सम्मान के साथ किया गया। उनके परिवार को तत्काल सहायता प्रदान की गई और आगे भी सहायता देने का आश्वासन दिया गया है। सेना ने कहा कि नामग्याल के निस्वार्थ बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा।

भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई, 1999 के बीच हुए कारगिल युद्ध को 'ऑपरेशन विजय' के नाम से भी जाना जाता है। पाकिस्तानी सैनिकों और कश्मीरी उग्रवादियों ने भारत-पाकिस्तान के बीच की नियंत्रण रेखा पार कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर 5,000 सैनिकों के साथ घुसपैठ कर कब्जा कर लिया था। मई, 1999 की शुरुआत में अपने लापता याक की खोज करते समय ताशी नामग्याल ने बटालिक पर्वत श्रृंखला के ऊपर पाकिस्तानी सैनिकों को पठानी पोशाक में बंकर खोदते हुए देखा था। उन्होंने कारगिल में पाकिस्तान सेना के घुसपैठ कर कब्जा जमा लेने की पहली सूचना 3 मई, 1999 को भारतीय सेना को दी थी।

इसके बाद सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिए 'ऑपरेशन विजय' चलाया। तीन मई से 26 जुलाई 1999 के बीच हुए कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिक तेजी से लामबंद हुए। भारतीय सेना की पेट्रोलिंग टीम 5 मई को जानकारी लेने कारगिल पहुंची तो पाकिस्तानी सेना ने उन्हें पकड़ लिया और उनमें से 5 की हत्या कर दी। इसके बाद 9 मई को पाकिस्तानियों की गोलाबारी से भारतीय सेना का कारगिल में मौजूद गोला बारूद का स्टोर नष्ट हो गया। पहली बार लद्दाख के प्रवेश द्वार यानी द्रास, काकसार और मुश्कोह सेक्टर में 10 मई को पाकिस्तानी घुसपैठियों को देखा गया।

इसके बाद 26 मई को भारतीय वायु सेना को कार्यवाही के लिए आदेश दिया गया। इस पर 27 मई को वायु सेना ने पाकिस्तान के खिलाफ मिग-27 और मिग-29 का इस्तेमाल किया था। इस युद्ध में बड़ी संख्या में रॉकेट और बमों का इस्तेमाल किया गया। इस दौरान करीब दो लाख पचास हजार गोले दागे गए। आखिरकार 26 जुलाई को कारगिल युद्ध आधिकारिक तौर पर समाप्त हो गया और भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों के मिशन को विफल कर दिया था। नामग्याल की सतर्कता भारत की जीत में सहायक साबित हुई और उन्हें एक वीर चरवाहे के रूप में पहचान मिली।

सेना ने बयान में कहा कि वर्ष 1999 में कारगिल सेक्टर में पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ किए जाने के बारे में भारतीय सैनिकों को सूचना देने वाले लद्दाख के चरवाहे ताशी नामग्याल का निधन लद्दाख की आर्यन वैली में स्थित गारखोन में हो गया। वह 58 वर्ष के थे। नामग्याल अपनी बेटी व शिक्षिका शीरिंग डोलकर के साथ द्रास में 25वें कारगिल विजय दिवस में शामिल हुए थे। लेह स्थित ‘फायर एंड फ्यूरी कोर' ने कहा कि फायर एंड फ्यूरी कोर ताशी नामग्याल के आकस्मिक निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करती है। सेना ने लिखा कि एक देशभक्त का निधन हो गया। लद्दाख के वीर, आपकी आत्मा को शांति मिले।

श्रद्धांजलि संदेश में 1999 में ‘ऑपरेशन विजय' के दौरान राष्ट्र के लिए उनके अमूल्य योगदान पर प्रकाश डाला गया और कहा गया कि यह 'स्वर्णिम अक्षरों में अंकित रहेगा। इसके बाद सेना के अधिकारी उनके गांव पहुंचे और पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कराया। सेना की फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स ने ताशी नामग्याल के परिवार के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि कारगिल में घुसपैठ के बारे में सबसे पहले सूचना देने वाले नामग्याल के परिवार को तत्काल सहायता प्रदान की गई है और आगे भी सहायता का आश्वासन दिया गया है। ताशी नामग्याल के परिवार में पत्नी, दो बेटे और एक बेटी हैं। सेना राष्ट्र के लिए उनके योगदान के लिए ऋणी रहेगी और उनके निस्वार्थ बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा।--

बड़ी खबर