शिक्षा मंत्रालय दो दिसंबर से आयोजित करेगा काशी तमिल संगमम 4.0
रांची (RANCHI): शिक्षा मंत्रालय आगामी दो दिसंबर से काशी तमिल संगमम 4.0 (केटीएस 4.0) का आयोजन करने जा रहा है. वाराणसी में 15 दिसंबर तक होने वाले संगमम में तमिलनाडु से 1,400 से अधिक प्रतिनिधि शामिल होंगे.
पहल का उद्देश्य
शिक्षा मंत्रालय ने शनिवार को एक बयान में कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रेरणा से शुरू हुई इस पहल का उद्देश्य तमिलनाडु और काशी के बीच प्राचीन सांस्कृतिक, भाषाई और ज्ञान परंपराओं के संबंधों को और मजबूत करना है. इस कार्यक्रम का समन्वय आईआईटी मद्रास और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा किया जा रहा है, जबकि कई केंद्रीय मंत्रालय और उत्तर प्रदेश सरकार इसमें सहयोग कर रहे हैं.
तमिल विरासत स्थलों का भी भ्रमण करेंगे प्रतिनिधी
प्रतिनिधियों को काशी में स्थित तमिल विरासत स्थलों का भी भ्रमण कराया जाएगा, जिनमें महाकवि सुब्रमण्यम भारती का पैतृक आवास, केदार घाट, “लिटिल तमिलनाडु” क्षेत्र का काशी मदम, काशी विश्वनाथ मंदिर और माता अन्नपूर्णा मंदिर प्रमुख हैं. इसके अलावा बीएचयू के तमिल विभाग में साहित्यिक और शैक्षणिक संवाद भी आयोजित होगा.
तेनकासी से शुरू होगी ‘संत अगस्त्य वाहन यात्रा’
केटीएस 4.0 के अंतर्गत प्रमुख पहलों में ‘संत अगस्त्य वाहन यात्रा’ 2 दिसंबर को तेनकासी से शुरू होकर 10 दिसंबर को काशी में समाप्त होने वाली यह यात्रा तमिलनाडु और काशी के बीच प्राचीन सांस्कृतिक मार्गों को पुनर्स्मरण कराएगी. यह यात्रा पांड्य शासक अदि वीर पराक्रम पांडियन की एकता-यात्रा को समर्पित है, जिन्होंने तेनकासी में शिव मंदिर का निर्माण कर दक्षिण काशी की संकल्पना को आकार दिया था. इसके अलावा वाराणसी के विद्यालयों में तमिल शिक्षण “तमिल कार्कलम” अभियान के तहत 50 तमिल शिक्षक काशी के स्कूलों में तमिल भाषा पढ़ाएंगे. उत्तर प्रदेश के छात्रों के लिए तमिलनाडु अध्ययन भ्रमण-कुल 300 छात्र इस कार्यक्रम के तहत 15 दिनों के लिए तमिलनाडु भेजे जाएंगे. वहां उन्हें तमिल भाषा, संस्कृति और विरासत से अवगत कराया जाएगा.
इस पोर्टल पर करें पंजीकरण
सभी श्रेणियों के लिए पंजीकरण पोर्टल kashitamil.iitm.ac.in पर उपलब्ध है, जिसकी अंतिम तिथि 21 नवंबर 2025 रात 8 बजे है. चयन क्विज 23 नवंबर को आयोजित होगा. तमिलनाडु अध्ययन यात्रा के लिए विशेष पंजीकरण पोर्टल kashitamil.bhu.edu.in उपलब्ध है. काशी तमिल संगमम् 4.0 सांस्कृतिक आदान-प्रदान और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है, जो भारत की सभ्यतागत निरंतरता और विविधता में एकता के संदेश को और सशक्त बनाता है.















