पूर्वी सिंहभूम  विजयादशमी के पावन अवसर पर गुरुवार को कोल्हान के विभिन्न जिलों — पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम एवं रायकेला- खरसावां जिला में पारंपरिक ‘सिंदूर खेला’ का आयोजन बड़े उल्लास और भक्ति भाव के साथ किया गया। दुर्गा पूजा के समापन के मौके पर विवाहित महिलाओं ने माता दुर्गा को सिंदूर अर्पित कर दीर्घ वैवाहिक जीवन और पारिवारिक सुख-समृद्धि की कामना की। सुबह से ही पूजा पंडालों में महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ी। ढोल-ढाक की गूंज और उत्सवी माहौल के बीच सभी ने परंपरा निभाते हुए एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर शुभकामनाएं दीं।

सिंदूर खेला की शुरुआत मां दुर्गा की प्रतिमा को सिंदूर चढ़ाने से हुई। इसके बाद महिलाओं ने एक-दूसरे की मांग में सिंदूर भरते हुए पति की लंबी आयु और दांपत्य जीवन की स्थिरता की प्रार्थना की। पारंपरिक लाल किनारी वाली सफेद साड़ी पहने महिलाएं थाल सजाकर माता की विदाई से पहले भावुक नजर आईं। उनके चेहरे पर जहां एक ओर मुस्कान थी, वहीं माता के बिदाई के क्षणों में आंखें नम भी दिखीं।

पूजा समितियों ने महिलाओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए कई पंडालों में सिंदूर खेला के लिए विशेष मंच तैयार किए थे। कार्यक्रम के दौरान युवाओं और बच्चों ने इस रंगीन दृश्य को मोबाइल कैमरे में कैद किया। उपस्थित पुजारियों ने बताया कि सिंदूर खेला सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि स्त्री शक्ति, स्नेह और एकजुटता का प्रतीक है। यह बंगाली संस्कृति की पहचान है, लेकिन अब झारखंड में भी उत्साहपूर्वक मनाया जाने लगा है।

मां दुर्गा की प्रतिमा के विसर्जन से पूर्व हुए इस आयोजन ने पूरे वातावरण को श्रद्धा और उमंग से भर दिया। महिलाएं एक-दूसरे को गले लगाकर विदाई की शुभकामनाएं देती रहीं और अगले वर्ष दुर्गा पूजा के पुनः आगमन की प्रतीक्षा करने लगीं।

सिंदूर खेला मूलतः बंगाली समुदाय की परंपरा है, लेकिन झारखंड में भी इसका गहरा सांस्कृतिक प्रभाव देखा जा रहा है। विवाहित महिलाएं इस अवसर पर माता दुर्गा से अपने वैवाहिक जीवन की लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली की प्रार्थना करती हैं। यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी है, बल्कि महिलाओं के आपसी सौहार्द, सामाजिक जुड़ाव और सामूहिक उत्सव भावना का प्रतीक भी है।

रंग-बिरंगी साड़ियों में सजी महिलाएं नृत्य, गीत और पारंपरिक मिठाइयों के साथ इस अवसर का आनंद लेती रहीं। पूरे राज्य में भक्ति और उल्लास का ऐसा माहौल बना, जिसने त्योहार के समापन को यादगार बना दिया। सिंदूर खेला के जरिए महिलाओं ने एक बार फिर यह संदेश दिया कि परंपरा में निहित शक्ति, आस्था और एकता आज भी समाज को जोड़ने का काम कर रही है।