नई दिल्ली,  । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने मंगलवार को कहा कि संघ कार्य की प्रेरणा संघ प्रार्थना के अंत में कहे जाने वाले वाक्य ‘भारत माता की जय’ से मिलती है। संघ का निर्माण भारत को केंद्र में रखकर हुआ है और उसकी सार्थकता भारत को विश्वगुरु बनाने में है।

सरसंघचालक ने कहा कि भारत का स्वभाव संघर्ष नहीं बल्कि समन्वय है। विविधता में एकता भारत की पहचान है। इसी पहचान को उद्देश्य मानते हुए संघ कार्य करता है। शब्द बदल सकते हैं—कोई स्वयं को हिंदू कहे, कोई भारतीय या सनातनी—पर इनके पीछे भक्ति और श्रद्धा की भावना एक ही है। धीरे-धीरे वे लोग भी अब स्वयं को हिंदू कहने लगे हैं, जो पहले दूरी रखते थे।

संघ प्रमुख ने मंगलवार को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में समाज के विविध क्षेत्र से जुड़े लोगों से संघ की 100 वर्षों की यात्रा पर पहले चरण का संवाद किया। सम्मेलन अगले तीन दिनों तक चलेगा। सम्मेलन का विषय ‘100 वर्ष की संघ यात्रा – नए क्षितिज’ है। व्याख्यानमाला कार्यक्रम के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए डॉ भागवत ने कहा कि संगठन ने विचार किया कि समाज में संघ के बारे में सत्य और सही जानकारी पहुंचनी चाहिए। 2018 में भी इसी प्रकार का आयोजन हुआ था। इस बार चार स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित होंगे ताकि अधिक से अधिक लोगों तक संघ का सही स्वरूप पहुँच सके।

संघ की कार्यपद्धति पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि संघ किसी प्रतिक्रिया में पैदा नहीं हुआ बल्कि हिंदू समाज की स्थिति को देखकर अस्तित्व में आया है। संघ का मूल कार्य व्यक्ति निर्माण है। समाज उत्थान के लिए दो मार्ग हैं—पहला, मनुष्यों का विकास करना और दूसरा, उन्हीं के माध्यम से समाज कार्य कराना। स्वयंसेवक विभिन्न क्षेत्रों में काम करते हैं, लेकिन संघ उन संगठनों को नियंत्रित नहीं करता। भागवत ने कहा कि संघ का आधार वासुधैव कुटुंबकम की भावना है। इसी क्रमिक विकास के तहत संघ गाँव, समाज और राष्ट्र को अपना मानकर चलता है।

‘हिंदू’ नाम की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि इसका अर्थ केवल धार्मिक नहीं बल्कि राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी का भाव है। यह नाम दूसरों ने दिया, पर हमने इसे मानवशास्त्रीय दृष्टि से स्वीकार किया है। मनुष्य, मानवता और सृष्टि एक-दूसरे से जुड़े हैं और एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। हिंदू का अर्थ है समावेश और समावेशन की कोई सीमा नहीं होती। इसी कड़ी में उन्होंने कहा कि भारत में रहने वाले सभी लोगों के पूर्वज और डीएनए एक है।

भागवत ने कहा कि गुलामी के कालखंड में देश के कई महापुरुषों का मानना रहा है कि हिन्दू समाज के दुर्गुण दूर किए बिना ‘भारत माता की जय’ संभव नहीं है। डॉ. हेडगेवार ने सोचा कि जब दूसरों के पास समय नहीं है, तो वे स्वयं यह काम करेंगे। इसी उद्देश्य से 1925 में नागपुर में संघ की स्थापना कर उन्होंने संपूर्ण हिंदू समाज के संगठन का उद्देश्य रखा।

उन्होंने कहा कि राष्ट्र की परिभाषा सत्ता पर आधारित नहीं है। हम परतंत्र थे, तब भी राष्ट्र थे। जब संघ हिंदू राष्ट्र की बात करता है, तो इसका अर्थ किसी को छोड़ना या विरोध करना नहीं है। संघ मानता है कि संगठित होना समाज की स्वाभाविक अवस्था है, जैसे शरीर की स्वाभाविक अवस्था स्वस्थ रहना है। संघ प्रमुख ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का उल्लेख करते हुए कहा कि पहला प्रयास सफल नहीं हुआ, लेकिन उसने समाज में नई चेतना जागृत की। उसके बाद यह प्रश्न उठा कि मुट्ठीभर अंग्रेजों के सामने हम कैसे हार गए। इसी से राजनीतिक समझ की आवश्यकता महसूस हुई और कांग्रेस जैसी राजनीतिक धारा सामने आई। स्वतंत्रता मिलने के बाद इस धारा से अपेक्षित वैचारिक प्रबोधन नहीं हुआ, यह किसी पर दोषारोपण नहीं बल्कि तथ्य है।

उन्होंने कहा कि संघ की विशेषता है कि यह बाहरी स्रोतों पर नहीं बल्कि स्वयंसेवकों के व्यक्तिगत समर्पण पर चलता है। ‘गुरु दक्षिणा’ के माध्यम से प्रत्येक स्वयंसेवक संगठन के प्रति अपनी आस्था प्रकट करता है। कार्यकर्ता स्वयं नए कार्यकर्ता तैयार करते हैं, और यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है।

इस दौरान संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, उत्तर क्षेत्र के प्रांत संघचालक पवन जिंदल और दिल्ली प्रांत के संघचालक अनिल अग्रवाल मंच पर उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन प्रांत कार्यवाह अनिल गुप्ता ने किया। मंच पर उपस्थित महानुभावों का परिचय क्षेत्रीय कार्यवाह रोशन लाल ने कराया।

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना परम पूजनीय डॉ. हेडगेवार जी ने विजयादशमी के दिन वर्ष 1925 में नागपुर में की थी। संघ इस वर्ष अपने शताब्दी वर्ष का उत्सव मना रहा है। इस क्रम में संगठन ने देशभर में समाज से संवाद करने के विभिन्न कार्यक्रमों की योजना बनाई है।

यह कार्यक्रम 2 अक्टूबर से प्रारंभ होंगे, जिनमें देशभर में संघ के स्वयंसेवक गणवेश में संचलन करेंगे। इसके बाद घर-घर जाकर संघ के बारे में जानकारी देने से जुड़ा संपर्क अभियान, हिंदू सम्मेलन, सद्भाव बैठकें और अन्य आयोजन होंगे।

इसी कड़ी में सरसंघचालक मोहन भागवत देश के चार प्रमुख शहरों में तीन दिवसीय संवाद कार्यक्रम करेंगे। इस कड़ी में पहला आयोजन दिल्ली के विज्ञान भवन में प्रारंभ हुआ है। वर्ष 2018 में भी इसी स्थान पर ऐसा ही संवाद आयोजित किया गया था।