रोइनेट की ‘बीसी-सखी’ पहल से बदल रही ग्रामीण महिलाओं की ज़िंदगी
नई दिल्ली, । वाराणसी की रहने वाली 35 वर्षीय जयलक्ष्मी देवी ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी लेकिन जब वे बैंकिंग कॉरस्पॉन्डेंट्स( बीसी-सखी) बन कर काम करने लगी तब उन्हें कोई गंभीरता से नहीं लेता था लेकिन आज लोगों का नजरिया बदलने के साथ यह काम उनके लिए रोजगार का जरिया बन गया है।
गुरुग्राम की फिनटेक कंपनी 'रोइनेट' ने पांच साल पहले 'बीसी-सखी' पहल की शुरुआत की थी। इस पहल का उद्देश्य ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों की महिलाओं को बैंकिंग संवाददाता (बैंकिंग कॉरस्पॉन्डेंट्स) के रूप में निशुल्क प्रशिक्षण देना है, ताकि वे अपने समुदायों को घर-घर जाकर वित्तीय सेवाएं उपलब्ध करा सकें।
इन महिलाओं को स्मार्टफोन, बायोमेट्रिक माइक्रो-एटीएम और एक यूज़र-फ्रेंडली ऐप से लैस किया गया है, जिससे वे डिजिटल तौर पर सशक्त बनें। यह पहल सिर्फ 105 बीसी-सखियों से शुरू हुई थी, वहीं आज यह आंकड़ा 10,000 से अधिक सक्रिय बीसी-सखियों तक पहुंच चुका है। इनमें से कई महिलाएं पहली बार आय अर्जित कर रही हैं और 10 से 50 हजार रुपये प्रति माह तक कमा रही हैं।
रोइनेट के संस्थापक और प्रबंध निदेशक, समीर माथुर बताते हैं कि शुरू में ग्रामीण भारत में महिलाओं के बैंकिंग सेवाएं देने की अवधारणा को लेकर संदेह था। "लोग पूछते थे, 'घूंघट में रहने वाली महिला बैंकिंग सेवा कैसे देगी?' लेकिन हमने इन महिलाओं में सीखने, कमाने और समाज में अपनी पहचान बनाने की ललक देखी। उन्हें प्रशिक्षण दे कर बीसी-सखी बनाया। उन्हें देखकर गांव की अन्य महिलाएं भी बैंकिंग से जुड़ने लगी। उन्होंने बताया कि समय के साथ, बीसी-सखियां विश्वसनीय वित्तीय सलाहकार और समुदाय की प्रभावशाली प्रतिनिधि बन गई हैं। कुछ महिलाएं तो शुरुआत में बोलने से भी डरती थीं। लेकिन आज वे पेशेवर बैंकर बन चुकी हैं। लोगों को वित्तीय सलाह देती हैं और उन्हें इन्वेस्टमेंट की सलाह देती हैं।