महाराष्ट्र में एमवीए के लिए हिन्दुओं से ज्यादा कीमती हैं मुस्लिम वोट, सबकुछ करने को तैयार हैं कुछ पार्टियों के नेता
मुंबई,। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए जैसे-जैसे मतदान की
तारीख नजदीक आती जा रही है, यहां वोट के खातिर शरद पवार-उद्धव ठाकरे और
कांग्रेस के गठबंधन वाली महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के नेता और इससे जुड़ी
राजनीतिक पार्टियां किसी भी हद तक जाने को तैयार दिख रही हैं। इन्हें
बहुसंख्यक से ज्यादा अल्पसंख्यकों में मुसलमानों के एकमुश्त वोट की
चिंता है, इसलिए इन्होंने यहां 12 परसेंट वोट के लिए एक डील महाराष्ट्र
उलेमा बोर्ड से कर ली है, जिसके तहत महाविकास अघाड़ी के नेता उन तमाम
शर्तों को मानने को तैयार हो गए, जिनमें से कई आपत्तिजनक भी हैं।
महाराष्ट्र
में मुस्लिमों की कुल आबादी 1.3 करोड़ है। 288 विधानसभा सीटों में से 38
ऐसी सीटें हैं जहां पर करीब 20 फीसदी मुसलमान हैं। इसमें से भी 9 सीटें ऐसी
हैं जहां मुस्लिमों की आबादी 40 प्रतिशत से ज्यादा है। राजधानी मुंबई में
10 सीटाें पर मुस्लिमनों की आबादी 25 प्रतिशत से अधिक है। पिछले लोकसभा
चुनाव में लगभग एकतरफा मुस्लिम वोट महाविकास अघाड़ी को मिले थे। मुस्लिम
उलेमाओं ने इसी जनसंख्या का फायदा उठाते हुए पिछली बार की तरह इस बार भी
अपनी मांगें एमवीए के सामने रखीं और अब उन्हें वैसा ही इन नेताओं ने मान
लिया है। यहां इनकी सबसे बड़ी शर्त जो सामने आई है, वह है राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर पूरी तरह से महाराष्ट्र में प्रतिबंध लगा देने
की।
इस संबंध में सामने आया है कि ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड,
महाराष्ट्र के चेयरमैन नायाब अंसारी ने महाविकास अघाड़ी को एक पत्र लिखा
था, जिसका जवाब भी कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार) ने उनकी सभी शर्तें
मानते हुए उन्हें दिया है और उलेमा बोर्ड के नेताओं को चुनाव प्रचार के
लिए आमंत्रित किया है। यहां शर्त मानने का मतलब यह है कि यदि महाराष्ट्र
में कांग्रेस, एनसीपी और उद्धव गुट समेत महाविकास अघाड़ी में जुड़े
राजनीतिक संगठनों और नेताओं की सरकार बनती है तो वह सबसे पहले आरएसएस पर
प्रतिबंध लगाएगी। इसके साथ ही वक्फ बिल का विरोध यदि यहां एमवीए की सरकार
बनती है तो वह खुलकर करेगी। नौकरी और शिक्षा में 10 प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण
महाराष्ट्र में लागू हो जाएगा। साल 2012 से 2024 के दौरान जिन भी
मुसलमानों को दंगे फैलाने के आरोप के चलते जेल में बंद किया गया था,
उन्हें जेल से बाहर लाया जाएगा। पुलिस भर्ती में मुस्लिम युवाओं की
प्राथमिकता के आधार पर भर्ती होगी। महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड के लिए 1000 करोड़
का फंड एमवीए की सरकार आती है, तो वह देगी। इमामों-मौलानाओं को 15000
रुपये महीना देना शुरू कर दिया जाएगा।
इतना ही नहीं, महाराष्ट्र के
महाविकास अघाड़ी की सरकार बनती है तो 48 जिलों में मस्जिद,कब्रिस्तान और
दरगाह की जप्त जमीन का पुन: सर्वे कराने का आदेश दिया जाएगा। महाराष्ट्र
राज्य वक्फ बोर्ड में 500 कर्मचारियों की भर्ती करेगा। महाराष्ट्र राज्य
वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर अतिक्रमण हटाने के लिए महाराष्ट्र विधानसभा
में एक कानून भी लाया जाएगा। मौलाना सलमान अजहरी को जेल से बाहर निकालने के
लिए एमवीए के 30 सांसद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र ही नहीं
लिखेंगे, उन्हें बाहर निकालने के लिए सच्चे प्रयास भी करेंगे। रामगिरी
महाराज और नीतेश राणे को जेल में डालने की मांग जो मुस्लिम संगठनों और
उलेमाओं की है, एमवीए की सरकार आते ही वह उसे भी पूरा करेगी। आगे से जो भी
पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ बोलने की कोशिश करेगा, उसे कानूनी तौर पर सबक
सिखाया जाएगा यानी कि ऐसे लोगों पर कानूनी प्रतिबंध लगाने के लिए कानून
अस्तित्व में लाया जाएगा। इसके साथ ही महाराष्ट्र में भारत गठबंधन के
सहयोगियों के सत्ता में आने के बाद ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड के मुफ्ती
मौलाना, अलीम हाफिज मस्जिद के इमाम को सरकारी समिति में ले लिया जाएगा।
दरअसल,
अब महाविकास अघाड़ी के द्वारा उलेमाओं के संगठन की इन सभी बातों को मानने
एवं सत्ता में आते ही उन्हें पूरा करने का मतलब यह है कि इस संगठन से
जुड़ी राजनीतिक पार्टियों और इनके नेताओं को महाराष्ट्र के बहुसंख्यक
हिन्दू समाज के वोट से अधिक कीमती इन अल्पसंख्यक 12 प्रतिशत मुसलमानों
के वोट नजर आ रहे हैं। राज्य में मदरसों, मस्जिदों से खुले तौर पर घोषणा
होना शुरू हो गया है कि सभी मुसलमानों को एमवीए यानी महाविकास अघाड़ी को
एकमुश्त वोट करना है। इस संबंध में मराठी मुस्लिम सेवा संघ ने पर्चे समेत
कई मांगों और प्रश्नों के पर्चे भी अब तक सामने आ चुके हैं। भारतीय जनता
पार्टी ने इस पत्र और पत्र के जवाब में एमवीए की सहमति मिलने को 'वोट
जिहाद' का नाम दिया है।
इसके साथ ही आज महाराष्ट्र की राजनीति ने
कई सवाल पैदा कर दिए हैं, जो स्वस्थ लोकतंत्र पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे
हैं। क्या सत्ता पाने के लिए किसी भी हद तक जाना सही है? कांग्रेस-एनसीपी
और शिवसेना ने मुस्लिम वोट पाने के लिए आखिर ये तमाम मांगें स्वीकार कर
कैसे ली हैं! क्या इन मजहबी मांगों के आधार पर अपने वोट बेचना और पार्टियों
का इसे मान लेना तुष्टिकरण की श्रेणी में नहीं आता है? और यदि यह
तुष्टिकरण है तो फिर लोकतंत्र की रक्षा और उसका सम्मान कहां हैं, जिसकी
दुहाई देते इन दिनों हाथ में संविधान लेकर राहुल गांधी बोलते नहीं थकते
हैं। आज सवाल यह है कि जहां सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हैं,
क्या केवल वोट बैंक की खातिर किसी विशेष समुदाय की मांगों को प्राथमिकता
देना और अन्य समुदायों की उपेक्षा करना उचित है?
उल्लेखनीय है कि
पिछले दिनों जम्मू कश्मीर में भी हमने यही पैटर्न देखा, जहां
शिक्षा-स्वास्थ्य समेत कई अच्छे काम करने के बाद भी वोट मजहब के नाम पर ही
एक तरफा दिए गए। अब भी जम्मू-कश्मीर राज्य विधानसभा में उनकी पहली मांग
विकास, रोज़गार, शिक्षा नहीं, बल्कि 370 की वापसी ही देखने में सामने आई
है। इसी प्रकार से महाराष्ट्र में मुसलमानों की जिद दंगे फैलाने के आरोप
के चलते जेल में बंद मुस्लिम अपराधियों को पूरी तरह से सत्ता की ताकत के
जरिए छोड़ देने की है। पुलिस भर्ती में मुस्लिम युवाओं को प्राथमिकता देने
की है। महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड के लिए 1000 करोड़ का फंड एमवीए की सरकार आने
पर मांगा गया है। इमामों-मौलानाओं को 15000 रुपये महीना दिया जाएगा, लेकिन
पंथियों, पुजारियों पर एमवीए की चुप्पी है। मौलाना सलमान अजहरी को जेल से
बाहर निकालने के लिए किसी भी सीमा तक जाने की बात कहना सामने आया है। आज
रामगिरी महाराज और नीतेश राणे जैसे उन तमाम लोगों को जेल में डाल देने की
मांग हुई है, जो अभिव्यक्ति के तहत अपनी मुखर आवाज बुलंद करते हैं। बात
पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ बोलने की कोशिश करने पर कानूनी तौर पर सबक सिखाने
की हो रही है। ऐसे में आप सोचिए, आज लोकतंत्र का गला महाराष्ट्र में उलेमा
संगठन और महाविकास अघाड़ी मिलकर कैसे घोंट रहे हैं! जब सत्ता में आए नहीं
तब ये हाल है, यदि सत्ता में आ जाते हैं तब ये क्या करेंगे? फिलहाल इसके
लिए कुछ दिन का इंतजार है, देखना होगा आखिर महाराष्ट्र की जनता अपने लिए
क्या निर्णय लेती है।