देहरादून भारतीय संस्कृति, सभ्यता व लोक आस्था पर्व दीपावली-दीपोत्सव के बाद अब सूर्य की साधना का छठ महापर्व पांच नवंबर से शुरू होगा। लोक आस्था का महापर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। छठ पर्व पर महिलाएं कठिन व्रत रख सायंकाल नदी तालाब या जल से भरे स्थान पर खड़े होकर अस्ताचलगामी भगवान सूर्य को अर्घ्य देंगी और दीप जला रात्रि जागरण कर गीत, कथा आदि के माध्यम से भगवान सूर्य नारायण की महिमा का बखान करेंगी। लोक आस्था का महापर्व छठ पांच से आठ नवंबर तक चलेगा। यह व्रत केवल महिलाएं ही नहीं, बल्कि पुरुष भी रखते हैं।

वैसे तो छठ महापर्व सात नवंबर को मनाया जाएगा लेकिन इससे जुड़ी तमाम पूजा व परंपरा दो दिन पहले यानी पांच नवंबर को ही नहाय-खाय के साथ प्रारंभ होगी जबकि व्रत का समापन आठ नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ होगा। चार दिन तक चलने वाले छठ पर्व पर छठी मैय्या और सूर्यदेव की पूजा होती है। मुख्य पूजा सात नवंबर को होगी। कार्तिक माह के चतुर्थी तिथि यानी पहले दिन नहाय-खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन संतान के स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु के लिए माताएं पूरे 36 घंटे का निर्जल व्रत रखेंगी।

भावना, उम्मीदों और खुशियों से जुड़ा है छठ महापर्व

यूं तो छठ बिहार का महापर्व है। बिहारवासियों के लिए छठ सिर्फ एक महापर्व नहीं, बल्कि लोगों की भावना, उम्मीदों और खुशियों से जुड़ा है। कई लोगों के लिए छठ वर्ष में एक बार पूरे परिवार के साथ रहने का सुनहरा अवसर है तो कई लोगों के लिए यह ठेकुआ और खीर खाने का मौका। छठ एक ऐसा त्योहार है जब लोग हर हाल में घर आने के लिए उत्साहित रहते हैं। वैसे कहा जाता है कि पर्व-त्योहार रिश्तों को मजबूत बनाते हैं और बिछड़ों को पास लाते हैं। बात जब छठ की करें तो लोग इसे एक परिवार की तरह मनाते हैं।

...तब से निरंतर होती चली आ रही छठ पूजा

भारत माता मंदिर के महंत एवं निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी ललिता नंद गिरि के अनुसार, भारतीय संस्कृति के सारे आचार-विचार का उल्लेख पुराणों में मिलता है। सभी 18 पुराणों में भगवान सूर्य की महिमा का गुणगान मिलता है लेकिन सूर्य पुराण में विस्तार से सूर्योपासना के बारे में उल्लेख मिलता है। इसी प्रकार भविष्य पुराण में भी सूर्य के विषय में आचार-विचार नियम के लाभ और कहां से सूर्योपासना प्रारंभ हुई का विस्तृत उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि सूर्य उपासना को जानने वाले ब्राह्मण उस समय दिव्य लोक में रहते थे, जिन्हें गरुण देवता पृथ्वी पर लेकर आए और उन्होंने तीन दिनों तक यज्ञ व मंत्र आदि का पाठ किया। इसके बाद दिव्य लोक से आए ब्राह्मण बिहार के वैशाली मगध व गया आदि में बस गए, तब से यह पूजा निरंतर होती चली आ रही है। छठ पर्व देश ही नहीं, विदेशों में भी मनाया जाता है।

नहाय-खाय

नहाय-खाय से छठ पूजा की शुरुआत होती है। छठ पूजा की नहाय खाय परंपरा में व्रती नदी में स्नान के बाद नए वस्त्र धारण कर शाकाहारी भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन व्रत का संकल्प लेकर सात्विक भोजन जैसे चने की दाल, लौकी की सब्जी, भात खाया जाता है। भोजन में सेंधा नमक का ही उपयोग होता है। इस दिन व्रती के भोजन ग्रहण करने के बाद ही घर के बाकी सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं।

खरना

खरना छठ पूजा का दूसरा दिन होता है। खरना के दिन व्रती एक समय मीठा भोजन करते हैं। इस दिन गुड से बनी चावल की खीर खाई जाती है। इस प्रसाद को मिट्टी के नए चूल्हे पर आम की लकड़ी से आग जलाकर बनाया जाता है। इस प्रसाद को खाने के बाद व्रत शुरू हो जाता है। इस दिन नमक नहीं खाया जाता है।

संध्या अर्घ्य

छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण तीसरा दिन संध्या अर्घ्य का होता है। इस दिन व्रती घाट पर आकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। छठ पूजा का तीसरा दिन बहुत खास होता है। इस दिन टोकरी में फल, ठेकुआ, बावल के लड्डु आदि अर्घ्य के सूप को सजाया जाता है। इसके बाद नदी या तालाब में कमर तक पानी में रहकर अर्घ्य दिया जाता है।

उगते सूर्य को अर्घ्य

चौथा दिन यानी सप्तमी तिथि छठ महापर्व का अंतिम दिन होता है। इस दिन उगते भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण का होता है। इसके बाद ही 36 घंटे का व्रत समाप्त होता है। माना जाता है कि छठ पूजा में मन-तन की शुद्धता बहुत जरूरी है। अर्घ्य देने के बाद व्रती प्रसाद का सेवन करके व्रत का पारण करती

है।

कब है छठ पूजा

छठ पूजा का पहला दिन : 05 नवंबर को नहाय-खाय

छठ पूजा का दूसरा दिन : 06 नवंबर को खरना

छठ पूजा का तीसरा दिन : 07 नवंबर को संध्या अर्घ्य

छठ पूजा का चौथा दिन : 08 नवंबर को उषा अर्घ्य

छठ पूजा सामग्री

प्रसाद रखने के लिए बांस की दो बड़ी टोकरियां, सूर्य को अर्घ्य देने के लिए बांस या पीतल से बने बर्तन, दूध और गंगाजल के अर्घ्य के लिए एक गिलास, लोटा और थाली सेट, पानी वाला नारियल, पांच पत्तेदार गन्ने के तने, चावल, बारह दीये, रोशनी, कुमकुम, अगरबत्ती, सिंदूर, कैले का पत्ता, केला, सेब, सिंघाड़ा, हल्दी, मूली और अदरक के पौधे, शकरकंद और सुथनी (रतालू प्रजाति), सुपारी, शहद और मिठाई, गुड, गेहूं और चावल का आटा, गंगाजल, दूध और ठेकुआ।

धूमधाम से मनाएगा महापर्व

लोक आस्था महापर्व छठ पूजा की तैयारी तेज हो गई है। छठ महापर्व आस्था के साथ मनाया जाएगा। इसके लिए बाजार भी सजने लगे हैं। घाटों की साफ-सफाई की जा रही है। बिहारी महासभा के अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा कि बिहारी महासभा लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा धूमधाम से मनाएगा। देहरादून में टपकेश्वर महादेव मंदिर, प्रेम नगर, चंद्रबनी व मालदेवता में मुख्य रूप से छठ पूजा का आयोजन किया जाएगा। पूजा की तैयारी के लिए कार्य समिति गठित की गई है और सदस्यों को दायित्व बांटे गए हैं।

विदेशों में भी लोकप्रिय है छठ

सचिव चंदन कुमार झा ने कहा कि दिवाली के बाद से ही छठ पर्व की तैयारी शुरू हो जाती है। दिवाली के छह दिन बाद छठ महापर्व धूमधाम से मनाया जाता है। विशेष रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में इस पर्व की धूम देखने को मिलती है। केवल भारत ही नहीं, बल्कि छठ महापर्व की लोकप्रियता सात समुंदर पार विदेशों तक देखने को मिलती है। छठ पूजा का व्रत कठिन व्रतों में से एक है। इसमें पूरे चार दिनों तक व्रत के नियमों का पालन करना पड़ता है और व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं। इस वर्ष छठ व्रत की शुरुआत पांच नवंबर से नहाय-खाय के साथ होगी। छठ पूजा में नहाय खाय, खरना, अस्ताचलगामी अर्घ्य और उदयागामी अर्घ्य का विशेष महत्व होता है।

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