नेपाल-भारत के बीच वाणिज्य सचिव स्तरीय वार्ता 9-10 जनवरी को काठमांडू में
काठमांडू। नेपाल और भारत के बीच वाणिज्य सचिव स्तर की वार्षिक
बैठक काठमांडू में होने जा रही है। नेपाल-भारत व्यापार और परिवहन
अंतर-सरकारी समिति (आईजीसी) के नाम से होने वाली यह वार्षिक बैठक 9 और 10
जनवरी को होना तय हुआ है।
नेपाल के वाणिज्य मंत्रालय के प्रवक्ता
बाबूराम अधिकारी ने बताया कि दोनों देशों के बीच वाणिज्य सचिव स्तर की
आईजीसी बैठक पिछली बार दिल्ली में होने के कारण इस बार काठमांडू में होना
तय हुआ है।
इस समय वाणिज्य मंत्रालय भारत के साथ वार्ता के लिए
एजेंडा का मसौदा तैयार कर रहा है। मंत्रालय के प्रवक्ता के मुताबिक,
संबंधित सभी पक्षों से चर्चा के बाद मसौदा तैयार किया जा रहा है। उन्होंने
कहा कि अगले कुछ दिनों में दोनों देशों के बीच वार्ता के एजेंडे के शुरुआती
मसौदे का आदान-प्रदान किया जाएगा।
मंत्रालय के प्रवक्ता अधिकारी
ने बताया कि आईजीसी की बैठक में मुख्य रूप से व्यापार, परिवहन और निवेश पर
केंद्रित एजेंडे पर चर्चा होगी। नेपाल के तरफ से वाणिज्यिक संधि में संशोधन
पर जोर दिया जा रहा है। इसी तरह, पारगमन संधि के प्रोटोकॉल में अधिक
स्पष्टता और संशोधन का एजेंडा भी समावेश किए जाने की जानकारी प्रवक्ता ने
दी है।
नेपाल अपने यहां से भारत में होने वाले वस्तुओं के निर्यात
को सुविधाजनक बनाने, व्यापार घाटे को कम करने, गुणवत्ता परीक्षण की सुविधा
और नेपाल में भारतीय निवेश बढ़ाने के एजेंडे को भी शामिल कर रहा है।
प्रवक्ता बाबूराम अधिकारी ने कहा कि आईजीसी बैठक के लिए हमारे ज्यादातर
एजेंडे पुराने हैं। उन्होंने कहा, ''व्यापार और पारगमन समझौतों और
प्रोटोकॉल की समीक्षा करना हमारा नियमित एजेंडा है तथा निर्यात और निवेश भी
प्रमुख एजेंडा है। भारतीय पक्ष का एजेंडा आदान प्रदान होने के बाद दोनों
पक्षों में सहमति है पर अंतिम एजेंडा तय किया जाएगा।
निजी क्षेत्र
की ओर से, नेपाल-भारत चैंबर ऑफ कॉमर्स (निक्की) ने भी अपने तरफ से आगामी
आईजीसी बैठक में उठाए जाने वाले एजेंडे को लेकर अपना सुझाव दिया है। इस
संस्था के अध्यक्ष सुनील के सी ने बताया कि सभी निजी क्षेत्रों के साथ
परामर्श करने के बाद आए सुझावों को समेटते हुए मंत्रालय को अपनी मांगों को
लेकर अवगत करा दिया है।
उन्होंने कहा कि नेपाल भारत के बीच व्यापार
सुविधा, लागत में कमी, समान व्यवहार, हरित व्यापार और अन्य व्यापार सहित
परिवहन समझौतों पर जोर देने तथा मौजूदा मार्गों को बदलने, रेलवे को जोड़ने
और निर्यात के लिए जलमार्गों का उपयोग करने का सुझाव दिया गया है।