नहीं रहे तबला वादक जाकिर हुसैन, सैन फ्रांसिस्को में ली अंतिम सांस, परिवार ने की पुष्टि
सैन
फ्रांसिस्को,। विश्व विख्यात तबला वादक ''उस्ताद''
जाकिर हुसैन का यहां के एक अस्पताल में निधन हो गया। उनके परिवार ने इसकी
पुष्टि की । परिवार ने आज जारी बयान में कहा कि हुसैन की मृत्यु इडियोपैथिक
पल्मोनरी फाइब्रोसिस से उत्पन्न जटिलताओं के कारण हुई। उन्होंने 73 वर्ष
की आयु में आखिरी सांस ली।सैन फ्रांसिस्को क्रॉनिकल समाचार पत्र के अनुसार,
उनके परिवार के प्रवक्ता जॉन ब्लेइचर ने कहा कि हुसैन की मृत्यु दोपहर
3:42 बजे हुई। अंतिम क्षणों में परिवार के सभी सदस्य मौजूद थे। वह 1970 के
दशक में मुंबई से मैरिन काउंटी चले गए थे। वहां उन्होंने अंतरराष्ट्रीय
संगीतकारों के साथ काम किया। वो अलोंजो किंग्स लाइन्स बैले जैसी नृत्य
कंपनियों के साथ सहयोग करते थे। अमेरिकी ड्रमर नैट स्मिथ ने एक्स पोस्ट में
लिखा, "आपने हमें जो संगीत दिया, उसके लिए धन्यवाद। स्मिथ ने अपनी पोस्ट
के साथ 'एनपीआर' न्यूजलैटर को संलग्न किया है। इस न्यूजलेटर में उनके जीवन
के कृतित्व और व्यक्तित्व का भी जिक्र किया गया है। ग्रैमी विजेता मशहूर
संगीतकार रिकी केज ने एक हैंडल पर जाकिर हुसैन को याद करते हुए लिखा, ''मैं
महान उस्ताद जाकिर हुसैन के निधन से स्तब्ध हूं। बहुत दुखी हूं। इस खबर ने
मुझे हिला कर रख दिया। वो भारत के अब तक के सबसे महान संगीतकारों और
व्यक्तित्वों में से एक थे। सर्वश्रेष्ठ होने के साथ-साथ बेहद विनम्र और
मिलनसार स्वभाव के धनी व्यक्ति थे। उन्होंने कई संगीतकारों के करियर को
संवारा। वह कौशल और ज्ञान का खजाना थे। हमेशा कलाकारों को प्रोत्साहित करते
थे। उनकी विरासत हमेशा जीवित रहेगी। उनका प्रभाव पीढ़ियों तक महसूस किया
जाएगा। उन्होंने हमें बहुत जल्दी छोड़ दिया।''परिवार के प्रवक्ता जॉन
ब्लेइचर के अनुसार, वह दो हफ्ते से अस्पताल में भर्ती थे। हालत बिगड़ने पर
उन्हें आईसीयू में ले जाया गया, जहां उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
परिवार में उनकी पत्नी एंटोनिया मिनेकोला और उनकी बेटियां अनीसा कुरेशी और
इसाबेला कुरेशी हैं। नौ मार्च, 1951 को जन्मे जाकिर प्रसिद्ध तबला वादक
उस्ताद अल्ला रक्खा के पुत्र हैं। 'एनपीआर' के अनुसार, सांस्कृतिक राजदूत
जाकिर हुसैन अपने पीछे दुनिया भर के अनगिनत संगीत प्रेमियों के लिए संगीत
की असाधारण विरासत छोड़ गए हैं। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई प्रसिद्ध
अंतरराष्ट्रीय और भारतीय कलाकारों के साथ काम किया। इसमें महत्वपूर्ण है
1973 की संगीत परियोजना। इसमें अंग्रेजी गिटारवादक जॉन मैकलॉघलिन, वायलिन
वादक एल शंकर और तालवादक टीएच विक्कू विनायकराम के साथ भारतीय शास्त्रीय
संगीत और अंतरराष्ट्रीय संगीत के तत्वों से गूंथा गया। उन्होंने अपने
करियर में रविशंकर, अली अकबर खान और शिवकुमार शर्मा सहित भारत के लगभग सभी
प्रतिष्ठित कलाकारों के साथ सहयोग किया।पश्चिमी संगीतकारों यो-यो मा,
चार्ल्स लॉयड, बेला फ्लेक, एडगर मेयर, मिकी हार्ट और जॉर्ज हैरिसन आदि के
साथ उनकी जुगलबंदी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को अंतरराष्ट्रीय दर्शकों तक
पहुंचाया। जाकिर हुसैन को उनके करियर में चार ग्रैमी पुरस्कार मिले हैं।
उन्हें 1988 में पद्म श्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण
प्राप्त हुआ।